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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

13 March 2011

कहाँ मैं खेलूं चहकूं गाऊं .......!



कहाँ मैं खेलूं चहकूं गाऊं
आप बड़ों को क्या समझाऊं
बोलूं तो कहते चुप रहो
चुप हूं तो कहते कुछ कहो
कोई राह सुझाओ तो
मैं क्या करूं ?


मां कहती है इधर ना आओ
दादी कहती उधर ना जाओ
इतनी सारी हैं पाबंदी
क्या मैं हूं इस घर का बंदी
कोई राह सुझाओ तो
कैसे मैं जिऊं ?


दादा मुझको भूत दिखाते
पापा छिपकली से डराते
मां भी देती है ये धमकी
रात को ना मिलेगी थपकी
कोई राह सुझाओ तो
मैं क्यों डरूं ?

मैं हरदम करता हूँ काम
पल भर ना मुझको आराम
बड़ों के आगे एक न चलती
इसमें क्या है मेरी गलती
कोई राह सुझाओ तो
मैं क्यूं रूकूं ?


कार्टून का चैनल छोड़ो 
कोई चीज ना जोड़ो-तोड़ो 
मेरी घर में एक ना चलती
बिन गलती के डांट है मिलती
कोई राह सुझाओ तो.......... 
मैं क्यूं सहूँ ?

इसे बाल कविता कहूँ या बच्चे के मन के सवाल ........ या सिर्फ संवाद जो बच्चे और घर के लोगों के बीच होकर भी नहीं होता । हाँ अब इतना ज़रूर समझती हूँ कि छोटी छोटी मासूम शिकायतें बच्चों को भी होती है हमसे ................!

96 comments:

केवल राम said...

मैं हरदम करता हूं काम
पल भर ना मुझको आराम
इसमें क्या है मेरी गलती
बङों के आगे एक न चलती

आदरणीया मोनिका शर्मा जी
बाल मन के भावों का बहुत सूक्ष्म निरीक्षण कर आपने उन्हें अभिव्यक्त किया है ....!
मेरे दुसरे ब्लॉग "धर्म और दर्शन" पर आपका मार्गदर्शन अपेक्षित है

रूप said...

quite unanswerable. but why all this restrictions 2 the li'l kid......nice expressions .

प्रतुल वशिष्ठ said...

आपने बच्चे के मन की पीड़ा को शब्दों में बाँध दिया.
बच्चे मन को समझने वाले संवेदनशील हृदयों को बेहद अच्छी लगेगी यह रचना.
यह कविता ....... श्रेष्ठ कविता की कोटि में ठहरती है.

Patali-The-Village said...

बच्चों के अंतरमन से लिखी सुन्दर भावमई कवित| धन्यवाद|

Smart Indian said...

सारे सवाल जेनुइन हैं। माँ बाप और बुज़ुर्गोंको को अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति अधिक सावधान होना चाहिये।

डॉ. मनोज मिश्र said...

@मां कहती है इधर ना आओ
दादी कहती उधर ना जाओ
इतनी सारी हैं पाबंदी
क्या मैं हूं इस घर का बंदी
कोई राह सुझाओ तो........
बाल-मन की बेहतरीन भावाभिव्यक्ति,आभार.

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चों की ऊर्जा को प्रौड़ के मन से न तौला जाये, मैं चैतन्य के साथ हूँ।

प्रवीण पाण्डेय said...

*प्रौढ़

सुज्ञ said...

शानदार कविता है।
आपनें बाल-मन को बखूबी उकेरा है।
यही…बस यही…शिकायते हो सकती है।

Dr. Yogendra Pal said...

अति सुन्दर

G.N.SHAW said...

बस कुछ नहीं ..सबके सामने ज़रा सी मीठी मुस्कान बिखेर दो ...सब मान जायेंगे प्यार से ...बहुत -सुन्दर

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

दादा मुझको भूत दिखाते
पापा छिपकली से डराते
मां भी देती है ये धमकी
रात को ना मिलेगी थपकी
कोई राह सुझाओ तो........ मैं क्यों डरूं, मैं क्यों डरूं.........?

बच्चों के मन में झाँक कर देखने की सार्थक कोशिश !
बाल मन में उभरते सहज और स्वाभाविक प्रश्नों की कोमल अभिव्यक्ति को समेटे कविता बहुत ही प्यारी है !

रश्मि प्रभा... said...

haan babu... bahut uljhan hai, mushkil hai in badon ko samajhna ... isi me se raah nikalni hoti hai chahakne kee aur gane kee

Aditya Tikku said...

Utam -***

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही शानदार!

सादर

Satish Saxena said...

तुमको राह सुझाता हूँ, मैं
पते की बात बताता हूँ मैं
अगर बात न मानी जाये
साफ़ बात अपनी बतलादो

शोर मचाएं जोर जोर से
टोका टाकी कुछ न होगी
घर के हर डिब्बे बर्तन में
चाकलेट रखनी ही होगी

पानी में छप छप करने
की , भी पूरी आजादी होगी
भालू बन्दर और पिल्लों को
घर में सब आज़ादी होगी !

मांग हमारी, पूरी कर दो !
साफ़ साफ़ बतलाता हूँ मैं
अगर नहीं माने तो सुन लो
कल से पुच्ची नहीं मिलेगी

रानीविशाल said...

इतने प्यारे मासूम सवालों को खूब अच्छी तरह काव्य में ठाला है आपने ....लेकिन बाल ह्रदय की शिकायत भी वाजिब है ...सुन्दर रचना !!
----------------------
क्या नाम दें?

abhi said...

chaitanya...tumhare saath hun main...milo mujhse fir batata hun koi upaay :P

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यही से तो शुरू हो जाता है बंदिशों का खेल ....बच्चों के मनोविज्ञान को अच्छे से उकेरा है ..

vijai Rajbali Mathur said...

बच्चों की और से उनकी भावनाओं को उठा कर आपने लोगों को सोचने के उद्देश्य से प्रेरक कविता लिखी है.लोगों को इसके भाव को समझ कर बच्चों के प्रति अपने व्यवहार में परिवर्तन करना चाहिए.

News And Insights said...

बच्चों को खुलने की आज़ादी मिलनी चाहिए ...लेकिन किसी भी माँ बाप के सामने दो समस्याएं रहती हैं एक तो हमारा सामाजिक माहौल एस ही कि बच्चों के गलत चीजें सीखने का दबाव ज्यादा रहता है और दूसरे उन्हें लगता है कहीं हमारा बच्चा इस प्रतियोगी समाज में पिछड ना जाये इसलिए वो बंदिशों का सहारा लेते हैं| लेकिन आपसी सामंजस्य और थोड़ी सी आज़ादी देकर हल किया जा सकता है और हमें एक बार बालमन पर पडने वाले असर की तरफ तो ध्यान देना ही चाहिए|

अन्तर सोहिल said...

बहुत प्यारी कविता
हाँ सभी बच्चों के मन की बातें लिख दी आपने इन पंक्तियों में
काश बडे समझें

प्रणाम

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मम्मी कहती उधर न जाओ,
बीवी कहती उधर ही जाओ।
बेटी कहती कहीं न जाओ,
बैठो मेरे पास पढो-पढाओ।
चक्रव्युह में अपने को फ़ंसा पाता हूँ।
मैं खूंटा तुड़ाने को तैयार हो जाता हूँ।

मोनिका जी,आपने मेरे मन की बात कह दी। :)

Kailash Sharma said...

बाल मन को बहुत गहराई से महसूस किया है और उनके मन के प्रश्नों को बहुत सुंदरता से उकेरा है..

vandana gupta said...

बाल मन की बहुत सुन्दर तस्वीर खींची है।

Rakesh Kumar said...

बच्चे के मन के विषाद की सुंदर अभिव्यक्ति.ऐसे में ही बच्चे को 'विषाद योग' की परम आवश्यकता होती है जिससे उसके मासूम मन में अनावश्यक ग्रंथियां न बन जाएँ और उसका समुचित विकास हो पावे.बड़ों के द्वारा उसकी भावना को समझ उसके बालमन का उचित समाधान अति आवश्यक है.

naresh singh said...

बाल मन की व्यथा का सही चित्रण किया है |

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी said...

its very nice..said by you...
bahut khoob.....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी said...

bahut..hi madhur...mohak...rachna.. ke liye badhai...

पी.एस .भाकुनी said...

मां कहती है इधर ना आओ
दादी कहती उधर ना जाओ
इतनी सारी हैं पाबंदी
क्या मैं हूं इस घर का बंदी.....
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति,आभार.

Anonymous said...

मोनिका जी,

अहयद ये आपके लाडले की तस्वीर है.....बहुत नटखट और सुन्दर है.....ईश्वर उसे हमेशा खुश रखे......आमीन

मुझे लगता है इस दुनिया में सबसे ज़्यादा बंधन और दबाव बच्चे पर ही होते हैं जब वो छोटा होत्ता है तभी से क्योंकि वो शिकायत नहीं कर सकता....

Shalini kaushik said...

बहुत बात करते हैं बच्चे आप जैसे किन्तु चैतन्य जी ये सब बड़े आप जैसे प्यारे बच्चों के भलाई के लिए ही करते हैं और अब तो होली आ रही है और उपदेश मिलेंगे मानना जरूर..अच्छी कविता लिख लेती हैं मोनिका जी आप ..

सदा said...

वाह ...बालमन की उलझन को सुन्‍दर भावों से रचना में प्रस्‍तु‍त किया है ...बधाई ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

सतीश जी ने भी प्रतिउत्तर में कमाल की बाल कविता लिख दी.
बच्चों के भावों को स्वर दे पाना. उस आयु में फिर से प्रविष्ट होकर ही संभव है.
मेरे लिये यही एक कसौटी है किसी की भावुकता और संवेदनशीलता को परखने की.
मैं ब्लॉगजगत में रमने लगा हूँ
अब लगता हूँ कि कभी सभी बड़े बच्चों के साथ कभी बहुत देर तक छिपन-छिपायी खेलूँ.
या धूल में जाकर गिल्ली-बल्ला खेलूँ.
लेकिन थोड़ी ही देर बाद बड़ी आयु का बोध हो ही जाता है. और फिर से गंभीर हो जाता हूँ.
न जाने कब तक मुझे असली सा लगने वाला बड़े होने का नाटक खेलना होगा!

ठीक ही कहा है कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने :
"बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी.
गया ले गया उस जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी."

दिगम्बर नासवा said...

दादा मुझको भूत दिखाते
पापा छिपकली से डराते
मां भी देती है ये धमकी
रात को ना मिलेगी थपकी ...

बहुत सुंदर बॉल कविता है ... बच्चे के मन को लिख दिया है आपने ....बच्चे के मन की पीड़ा ...

Sunil Kumar said...

बच्चों के मन की बात आख़िरआपने पढ़ ही ली अच्छी लगी बधाई

amit kumar srivastava said...

bachpan ki yaad dila di aapne ,bahut khoob..

Rajeysha said...

बच्‍चे का दि‍ल पढ़ लि‍या है आपने।

Dr Varsha Singh said...

दादा मुझको भूत दिखाते
पापा छिपकली से डराते
मां भी देती है ये धमकी
रात को ना मिलेगी थपकी

शानदार कविता ....

राज भाटिय़ा said...

अरे यार यही प्राबलम मुझे भी थी जब मै तेरे जितना था.... जब पता चले तो हम को भी बताना. वेसे आज बहुत प्यारे लग रहे हो, हमारा आशिर्वाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब बच्चों की तो दुनिया ही निराली होती है.. उनके मन की भी ध्यान रखना चाहिये.

ज्योति सिंह said...

कार्टून का चैनल छोङो
कोई चीज ना जोङो-तोङो
मेरी घर में एक ना चलती
बिना कसूर के डांट है मिलती
कोई राह सुझाओ तो.............. मैं क्यूं सहूँ , मैं क्यूं सहूँ ...........?

मैं हरदम करता हूं काम
पल भर ना मुझको आराम
इसमें क्या है मेरी गलती
बङों के आगे एक न चलती
कोई राह सुझाओ तो.............मैं क्यूं रूकूं, मैं रूकूं..........?
bahut achchhi rachna ,bachcho ki chintaye jayaj hai ,kya kare ki na kare jaisi sthiti aa jati hai .

Sushil Bakliwal said...

वाकई, बच्चों का ये धर्मसंकट काबिले-गौर है ।

वीना श्रीवास्तव said...

बड़ी मीठा-सा गीत है एकदम आपके बेटे जैसा....
मजेदार यह है इतिहास अपने को दोहराता रहता है....हम भी कभी बच्चे थे और सही सोचते थे और आज वही व्यवहार करते हैं जो हमारे साथ हमारे माता-पिता का व्यवहार था.....
बहुत प्यारी कविता...

वीना श्रीवास्तव said...

बड़ा मीठा-सा गीत है एकदम आपके बेटे जैसा....तस्वीर आपके बेटे की ही है न...
मुझे पता नहीं....वैसे लगता तो यही है...
मजेदार यह है इतिहास अपने को दोहराता रहता है....हम भी कभी बच्चे थे और सही सोचते थे और आज वही व्यवहार करते हैं जो हमारे साथ हमारे माता-पिता का व्यवहार था.....
बहुत प्यारी कविता...

मदन शर्मा said...

शानदार कविता है।
अच्छी प्रस्तुति हार्दिक शुभकामनाएं!

मदन शर्मा said...

शानदार कविता है।
अच्छी प्रस्तुति हार्दिक शुभकामनाएं!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ इमरान जी
@ वीणा जी
हाँ ...चित्र में मेरा बेटा चैतन्य है..... उसके कुछ मासूम सवाल ही इन पंक्तियों में उतरे हैं.....

रचना दीक्षित said...

मैं हरदम करता हूं काम
पल भर ना मुझको आराम
इसमें क्या है मेरी गलती
बङों के आगे एक न चलती.

बाल मन के भावों का बहुत सूक्ष्म निरीक्षण.बेहतरीन भावाभिव्यक्ति,आभार.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ सतीश जी
सतीशजी आपने तो बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ रची हैं..... इस बेहतरीन अभिव्यक्ति लिए टिप्पणी के लिए आभार
@ प्रतुल जी
आपके विचारों से सहमत हूँ..... हम जब बच्चा बन जाना चाहते हैं उम्र का बोध स्वतः हो जाता है.... सुभद्रा जी की पंक्तियाँ साझा करने का आभार

Dr Xitija Singh said...

बहुत मासूम सवाल ...बहुत प्यारी रचना है ...

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

बहुत ही कोमल प्रश्न हैं....ये सारे प्रश्न कभी हमने भी दागे होंगे जरूर....बढ़िया.

ashish said...

बाल मन को पढ़ लेना और उसे शब्दों में व्यक्त करना , एक माँ ही कर सकती है . इस कविता के माध्यम से आपने बाल प्रश्नों को सजीव कर दिया है . उम्दा रचना .

Sadhana Vaid said...

बच्चों के मन की शंकाओं को बड़ी संवेदनशीलता के साथ आपने शब्द दिए हैं ! बहुत ही मनभावन रचना ! सारे दिन यही वार्तालाप अपने आसपास सुनने की आदत हो गयी है ! शायद हर घर की यही कहानी है ! बहुत बढ़िया रचना ! होली की शुभकामनाओं के साथ बहुत बहुत बधाई !

वाणी गीत said...

बच्चे की भावनाओं को बड़े भी समझते हैं मगर करें क्या !

Anonymous said...

Bachi ki man ki baat ko kagaz par utarne ka safal prayas aap ne kiya monika ji.... bahut sundar...Chaitany Bada hi bhagayshali bacha hai jisko aap jaisi Har bhav ko samjhane wali Ma Mili...

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

मां कहती है इधर ना आओ
दादी कहती उधर ना जाओ
इतनी सारी हैं पाबंदी
क्या मैं हूं इस घर का बंदी

बाल सुलभ मन की भावनाओं को उसी लहजे में अभिव्यक्त करना........अद्भुत|

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बालमन की भावनाओं को बड़े सुन्दर शब्दों में संवारा है आपने...

हार्दिक बधाई।

कुमार राधारमण said...

बालपन का छिनना बच्चों के लिए तो घातक है ही,बड़ों के लगातार असंवेदनशील होते जाने की जड़ भी है। बच्चों की मौलिकता बचे,तभी हमारा होना सार्थक!

Barun Sakhajee Shrivastav said...

bachho ke man kee behad bheetari diwar ke khusnuma rango kee khoobsoorat peshkash

अजित गुप्ता का कोना said...

मोनिकाजी् किस युग की बात कर रही है? मैं अभी अपनी नातिक के साथ हूं, बस केवल उसकी ही मर्जी चलती है। हम कह रहे हैं कि हम क्‍या करें?

Suman said...

jane anjane ham kitne sare prtiband lagate hai bachonke komal man par,
monika ji bahut sunder rachna hai...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

अरे वाह !
बच्चों की अपनी दुनिया है,अपनी बालसुलभ सोच है ,अपनी ढेर सारे कामों की व्यस्तता है मगर हम बड़े उन्हें समझने का प्रयास ही कहाँ करते हैं |
बहुत ही प्यारी कविता

धीरेन्द्र सिंह said...

कितना सही बालमन चित्रण किया है आपने, मन हर्षित हो उठा.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ अजित गुप्ता जी...... चलिए अच्छा है.... यानि उसने तो पार पा ली.... अब आप लोगों को सोचिये क्या करना है.... :)

Arvind Jangid said...

बाल भावनाओं को बहुत ही सुन्दर तरीके से पेश किया है आपने. आभार

मैडम जी ! चैतन्य को मेरी तरफ से आशीर्वाद जरुर देना.

होली के पावन पर्व की अग्रिम शुभकामनायें.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सभी प्रश्न एकदम सटीक और सही हैं । अकसर हम बडे भूल जाते हैं कि हम भी कभी बच्चे थे ।अच्छी
अभिव्यक्ति ।

Creative Manch said...

आपने इस सुन्दर कविता में बाल-मन को
बहुत शिद्दत से महसूस किया है
बच्चों की कविता के रूप में यह उत्कृष्ट रचना है


आखिर ये बड़ों की दादागीरी कब ख़त्म होगी :)

Akhilesh said...

यह सवाल भी अनोखे है और इन्हें बहुत ही सुन्दर रूप में पिरोया है|पर शायद इन शिकायतों के साथ का जीवन इनके बगैर के जीवन से काफी अच्छा है|

काश जीवन में यह सवाल फिर आ जाये और इनके जवाब फिर खो जाये|

बहुत अच्छी प्रस्तुति

रंजना said...

ओह यह कोमल मासूम बाल कविता मन को बेंध गयी....

जितनी सुन्दर मनमोहक यह कविता है उतनी ही गंभीर इसके द्वारा उठाये प्रश्न भी हैं...

गंभीरता से सोचना चाहिए इसपर....

आपका बहुत बहुत आभार इस अद्वीतीय रचना के लिए...

Manoj Kumar said...

bahut sundar!

Udan Tashtari said...

बच्चों की भावना को उम्दा चित्रित किया है.

Unknown said...

मोनिका जी
बाल मन में गहरे उतर कर एक बेहतरीन बाल कविता लिखी है आपने. सारी बाल सुलभ महत्वाकंछायें, शिकायतें उकेर दी है आपने .एक सवाल भी उठाती है रचना , होली की शुभकामनायें

विशाल said...

बाल मन के द्वंदों का खूबसूरत चित्रण किया है आपने.
काश हम बच्चों से ही सीख पाते.
सलाम.

Vijuy Ronjan said...

Monika Ji...bahut hi acchi prastutu hai Bal Manas ke dwand ki...ham bhi shayad bachpan mein isi tarah rahe honge...par jaise kaise samay beet ta hai ,bachpan jawani ki dahleez laangh jab paripakwa hone lagta hai, tab shayad wahi bachpan ka bandhan yad aata hai...aadmi us jakaran ko paane ke liye taras jaat hai...yahi niyati hai...
Bahut accha likhti hain aap...likhti rahiye aur samvaad bhi karti rahein agar fursat ho.

Arun sathi said...

इसी व्यवस्था में सुधार की जरूरत है मोनिका जी। आपने सटीक बात कही है। लोग समझे ंतब तो...मतलब इडीयट बनने दो भाई बच्चों को....

संजय भास्‍कर said...

आदरणीया मोनिका शर्मा जी
बाल मन को बहुत गहराई से महसूस किया है
.........शानदार कविता है।

संजय भास्‍कर said...

बाल मन के भावों का बहुत सूक्ष्म निरीक्षण.बेहतरीन भावाभिव्यक्ति,आभार.
कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

Anonymous said...

baal man ka bahut sajeev chitran...

उपेन्द्र नाथ said...

मोनिका जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति. बाल मन को अच्छी तरह से उजागर किया है आपने.

Urmi said...

आपकी टिपण्णी और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

रजनीश तिवारी said...

sab bhool jaate hain ki vo bhi kabhi bachche the..bachchon ko itni shikhsha dete hain aur itna control karte hain . Achcha ye War, Corruption, terrorism, crime etc. kaun karta hai ? Bachche ? No. adults do it! fir control main kise rakhna hoga ? Adults ko !
bahut achchi rachna !!

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वाह बेहतरीन....बाल मन की पीड़ा को बड़े बेहतरीन शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने !!
बधाई एवं आभार !!

OM KASHYAP said...

सुंदर कविता
आपका आभार
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये
ब्लॉग पर अनियमितता होने के कारण आप से माफ़ी चाहता हूँ

OM KASHYAP said...

सुंदर कविता
आपका आभार
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये
ब्लॉग पर अनियमितता होने के कारण आप से माफ़ी चाहता हूँ

Roshi said...

balak man ki sahi vyakya ki hai apne

Kunwar Kusumesh said...

मां कहती है इधर ना आओ
दादी कहती उधर ना जाओ
इतनी सारी हैं पाबंदी
क्या मैं हूं इस घर का बंदी
कोई राह सुझाओ तो........ कैसे जिऊं, कैसे जिऊं.

सुन्दर / सार्थक बाल कविता.

संध्या शर्मा said...

मोनिका शर्मा जी
बालक के मन के भावों को बहुत सुन्दर या कहूँ की उन्ही के शब्दों में अभिव्यक्त किया है .... बेटे अंतरिक्ष हमारे मम्मी पापा भी यही करते थे अब हम भी वही करते हैं फिर दादी बनेंगे तो दादी जैसा करेंगे और तुम अपने पापा जैसा.. हा हा हा
होली की शुभकामनायें........

shikha varshney said...

एक बालक के अंतर्मन की भावपूर्ण एवं सटीक अभिव्यक्ति.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कार्टून का चैनल छोङो
कोई चीज ना जोङो-तोङो
मेरी घर में एक ना चलती
बिना कसूर के डांट है मिलती....

अरे...अरे...यह तो ज़्यादती है...

गंगेश ठाकुर "गुंजन" said...

रचना बेहद अच्छी है। रचना ने दिल की गहराइयों में उतरकर पुराने दिनों की यादें ताजा कर दी । आज मेरे भी बचपन के दिन याद आ गये।

Brijendra Singh said...

हा हा हा..बालक मन के सटीक प्रश्न उजागर किये हैं मोनिका जी..

Hemant Kumar Dubey said...

Aap bahut achcha likhati hai.

Rajesh Kumari said...

kanha main chahakun kanha main gaaun...baal kavita padhkar maja aa gaya,bachcho ki mansik bhraantiyon ko bhali bhanti ujagar ki hai.aapki aur bhi rachnayen padhna chahungi.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

डॉ मोनिका जी बहुत सुन्दर रचना काश बच्चों के मन को सब समझें और अपना सारा प्यार उड़ेल दें उन पर -उन्हें हर पल ख़ुशी रखें -प्यारा चैतन्य तो वैसे ही इतना प्यारा है की सब खुश मौसम भी खुशगवार हो जाता है -ढेर सारी शुभ कामनाएं इसके भविष्य के लिए .

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भरमार

बाल झरोखा

lori said...

shona!
lagta hai ab toka taki mahsoos karne lage ho...
bahut pyara geet!

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